Satyanarayan puja vrat katha

श्रीसत्यनारायण की कथा और व्रत की महिमा सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है. सत्य में ही सारा जगत समाया हुआ है. सत्य के सहारे ही शेष भगवान पृथ्वी को धारण करते हैं। सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है. सत्य में ही सारा जगत समाया हुआ है। सत्य के सहारे ही शेष भगवान पृथ्वी को धारण करते हैं। श्रीसत्यनारायण व्रत का वर्णन देवर्षि नारद जी के पूछने पर स्वयं भगवान विष्णु ने अपने मुख से किया है। श्रीसत्यनारायण व्रत की कथा: एक बार योगी नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा। इससे उनका संतहृदय द्रवित हो उठा और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में हरि कीर्तन करते क्षीरसागर पहुंच गये और स्तुतिपूर्वक बोले, ‘हे नाथ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मृत्युलोक के प्राणिय...